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(४७६ ) बीजक कबीरदास । गुरुमुख । मैं सबमें हौं औ सब न होउँ ऐसे मोको बिलग बिलग कहे जुदा जुदा | बिलगाइकै बेद कह्यो । इहां दुइबार बिलग बिलग कह्यो सो एकतो चित् कहे | जीव ब्रह्म ईश्वर अचित् है माया काल कर्म सुभाव पृथ्वी आदिक मायाके कार्य सब सो ये दोहुनमे अंतर्यामी रूपते व्यापक हौ सो नीव ब्रह्म ईश्वर चित् तत्त्व में व्यापक हौं तामेप्रमाण ॥ “विष्ण्वाद्युत्तमदेहेषु प्रविष्टो देवताभवत् । मद्यधर्मदेहेषु स्थितो भजति देवताः॥इति श्रुतिः।‘एको देवः सर्वभूतेषुगूढः सर्वव्यापी सर्वभूतांतरात्मा इति श्रुतिः ॥ “ब्रह्मणो हि प्रतिष्ठाहमिति गीतायाम्॥ अचितौमें व्यापक है तामेप्रमाण ॥ “विष्टभ्याहमिदं कृत्स्नमेकांशेन स्थितो जगत् इति गीतायाम् ॥सो चित्अचिव्दोऊ व्याप्यपदार्थ हैं व्यापक मैं हौं सो चित् अचित्ररूप पिछौरा दुइ छोरिया मेरो ओढ़नहै सर्वत्र महीहौं सो वेद | को तात्पर्य न जानिकै लोग यकताई बोले हैं कि एकई ब्रह्म है पिछौरा ऑटै याको एकही कहै हैं दूसरा नहीं कहै हैं लोगजो यकताई कहैहैं सो कोनी तरह ने कहै है सो कहै हैं ॥ १ ॥ एक निरंतर अंतर नाहीं ज्यों घट जल शशि झाईहो । यक समान कोइ समुझत नाहीं जरा मरण भ्रम जाईहो॥२॥ वहीं ब्रह्म निरंतर एक सर्वत्र है या लोग बोलै हैं सो कहा अन्तर नहीं है अर्थात् अन्तरहै कैसे जैसे जलभरे घटनमें शशिकी छाया बामें व्याप्य व्यापक बनो है से एक जो मैं सो समान कहे सबमें समव्यापकहौं ताको कोई व्याप्य व्यापक कोई नहीं समुझे है तो कहा उनको जरा मरण भ्रम जाइहै अर्थात् नहीं जाईंहै सो अंतर्यामी रूपते व्यापक साहब कहि चुके अब निजरूपते जहाँ रहै हैं तहांकी बात कहै हैं॥२॥ रोन दिवस में तहँवों नाहीं नारि पुरुष समताईहो । नामैं बालक नामैं बूढ़ो ना मोरे चोलकाईहो ॥३॥ जहांमैं रहौ हौं तहां न राति है न दिनहै औ सब नारी रूपहैं जो पुरुषहू जाईहै। सो नारिन रूपते रासमें प्राप्त होइहै पुरुष महींह औ समताई है जैसे सच्चिदानन्दरूप