पृष्ठ:बीजक.djvu/५२३

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कहा । (४७७) ऐसे ओऊ सच्चिदानंद रूप मैं न बाळकह न बृद्धहौं सदा किशोररूप बनो । रहौह औ न मोरे चेलिकोई कहे कोऊ वह उपदेश्य नहीं है अर्थात् अज्ञानी कोऊ नहीं हैं सब मेरे रूपको जानै हैं उहां राति दिन नहीं है तामें प्रमाण ॥ "न तद्भासयते सूर्यो न शशांको न पावकः । यद्गत्वा न निवर्तते तद्धाम परमं मम ॥ ३ ॥ तिरविध रहौं सवनमें वरतौं नाम मोर रमराई हो । पठये नजाउँ आने नार्ह आऊ सहज रहीं दुनिआई हो॥४॥ तिरबिध रहौं कहे जीव ब्रह्म ईश्वरनमें जो अंतर्यामी रूपते रहौहीं औ सबनमें बरतें कहे माया काल कर्म सुभाव इन में जो अंतर्यामी रूपते रहो सो इनमें जो रमनवारो अंतर्यामी मेरो रूप ब्रह्म ताहूको मैं राई सो पठये नहीं जाउहौं न आनते आऊहौं अर्थात् जो कहूं नहोउं तौ ना आने आऊँ न पठये जाउँ सर्वत्रै तो हौं सो यही रीतिते सहजही या दुनियाँमें अंतर्यामीके | अंतर्यामी रूपते पूर्णहीं ॥ ४ ॥ जोलहा तान वान नाहिं जानें फाट विनै दश ठाईहो। गुरु प्रताप जिन जैसो भाष्योजन विरले सुधि पाई हो॥५॥ | जोलहा जे हैं जीव ते तान बान नहीं जानैं अर्थात् वा हंसस्वरूप पेसाक बनै नहीं जानैं जो पहिरिके मेरे समीप अवै फाटविनै दश ठाई कहे दशहैं। छिद्र जिनमें ऐसो जो शरीर ताहीको बिनै है कहे नाना मतनमें परिकै वहीं कर्म करैहै जामें अनेक जन्म शरीर धारण करत जायहै जो कहो को जानतही नहीं है तौ गुरुके प्रतापते जो कोऊ मेरो रूप भाष्यो है जैसो सो तो कोई बिरला जन सुधि पायो है अर्थात् जाको सत्गुरु मिल्यो है साई पायों है ॥५॥ अनंत कोटि मन हीरा वेध्यो फिटकी मोल न आईहो। सुर नर मुनि वाके खोज परेहैं किछु किछु कबिरन पाईहो ६ अनंत कोटि जे जीव हीरा तिनमें मन बेध्यो है सो या हीरारूप जीवको फिटकिरिउ को मोल न रहिंगयो सो सुर जे हैं मुनि जे हैं नर जै