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पृष्ठ:बीजक.djvu/५३०

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(४८४) बीजक कवीरदास । तामें धुनियहहै कि, औरै देवतन की उपासनामें बड़ो ऐश्वर्ण्य प्राप्तिहोइहै यह पोथिनमें पढ़ि पढ़ि भुलाइगयो । वाहूको जीभैभरेते कह्यो कछुप्राप्ति नहीं मैं से तुम फेरि यमके अंत कहे संसारमें परिहौ । औ जो लेहू पाठहोय तौ रस नामें श्रीबसंतको पढ़िलेहुनहीं तो पुनि यमके अंत कहे फंदमें परिहौ ॥ १ ॥ | जो मेरुदंड पर डक दीन्ह।सो अष्टकमल परजार लीन्ह२ औ जो या गुमान करो कि हम योगवारे हैं हम यमके अंतमें न परेंगे । सो जो तुम मेरुदंडमें प्राणबँचिकै मेरुदंडपर डेका दीन्ह्यो, औ अष्टजो हैं आयें कमल मूलाधार, विशुद्ध, मणिपूरक, स्वाधिष्ठान, अनहद, आज्ञाचक्र, सहस्रारचक्र, अठयें सुरतिकमल जहां परमपुरुषहै तामें पहुंचिकै जारि दीन्ह अर्थात योगौ की खबर भूलिगई ॥ २ ॥ तहँ ब्रह्म अग्नि कीन्हो प्रकासातहँ अद्धो ऊर्ध्व बहती बतास३ तहँनवनारीपरिमलसोगावॅमिलिसखीपांचतहदेखनजावॅ४ सो वा ज्येतिमें लीनभयो जीवतहैं ब्रह्मअग्नि प्रकाश करत भई औ बतासजो अधोऊध्र्व श्वास सा वैहै बहतभै अर्थात् बहिरे न आवत भै श्वास वहैं रहत भै याभांति जीव तखतमें बैठि मालिक भयो गांउकारा बसंतदेखैहै ॥ ३ ।। सो यहां पारमल कहे गंधक गांव है शरीरमें पृथ्वीतत्त्व अधिक है सो गंधका गांव शरीर तौने में नौ नारी हैं कहे नौ राहहैं तहां पांचो जे ज्ञानेन्द्री हैं तेई सखी देखन जाय अर्थात् चहैं लीन द्वै गई हैं ॥ ४ ॥ तहँ अनहद बाजा रहल पूरोतहँ पुरुष बहत्तरि खेलें धूर॥५॥ नैं माया देखिकसरहसिभालजसवनस्पतीवनरहलफूल ६ बसंतमें बाजा बजै है सो अनहद् बाजा जहां पूरि रह्यो है तहां बहत्तर पुरुष जे बहत्तरकोठाहैं ते धूरि खेलैहैं अर्थात् चैतन्यता न रहिगै ॥ ५ ॥ सो बसंतमें बनस्पती फूलै हैं ऐसे या माया फूलि रही है । तामें समाधि उतरे फिर काहे भूले । अथवा जैसे बनस्पतीफूलैहैं ऐसे गैवगुफामें सुधापीकै नागिन फूली है तामेंतें काहे भूलिरहै है । कहा वा माया के बहिरे है समाधि नागिनिहीके आधार तो समाधिउँहै ॥ ६ ॥