पृष्ठ:बीजक.djvu/५४५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

बसंत । (४९९) जैसे हम रामनाम दैकै जीवनको उद्धार करते हैं तैसे तुमहूं करोगे । तत्र तस देखोगे कि राम नामते कैसेहू विषयी होइ पै वाको उद्धारई होइ जाइहै।औ काशीमें रामनामही ते मुक्तिहोइहै रामई नाम महादेव देइहैं तामें प्रमाण ॥ * पेयं पेयश्रवणपुटके रामनामाभिरामं ध्येयं ध्येयं मनसि सततं तारकं ब्रह्मरूपम् । अल्प जल्पंप्रकृतिविकृती प्राणिनां कर्णमूले वाथ्यांवीभ्यामटतिजटिलः कोपि काशी निवासी । इतिस्कांदे ॥ ९ ॥ इति ग्यारहवां बसंत समाप्त । अथ बारहवां बसंत ॥ १२ ॥ । हमरे कहल कर नहिं पतिया।आपु वूडेनर सलिलै धार॥ अंधा है अंध पतिआय । जस विश्वा के लगने जाय॥२॥ सोतो कहिये अतिहि अबूझ खसम ठाढ़ ढिग नाहीं सूझ३ आपन आपन चाहहिं मान । झुठ परपंच साँचकै जान॥४॥ झूठा कबहुं करौ नहि काज। मैं तोहिं बरजौं सुनु निरलाज छाड़हु पाखंड मानहुं वात। नहिंतौ परिहौ यमके हात ॥६॥ कहै कबीर नर चले न सोझ। भेटकि मुयेजस बनके रोझ ७ हमरे कहल कर नहिं पतिया।आपु बूड़े नर सलिलै धार॥ अंधा कहै अंध पतिआय।जस विश्वाके लगनै जाय ॥२॥ सो तौ कहिये अतिहि अबूझ । खसम ठाढ़ ढिग नाहीं सूझ ३ | श्री कबीरजी कहै हैं कि, हमरे कहे ये जीव कोई नहीं पतिआय साहब में कोई नहीं लगते हैं; आपने खुशीते बानी रूप सलिलमें बूड़े जाते हैं बानी को पानी आगे कहि आये हैं ॥ १ ॥ आंधर ने गुरुवा लोग ते नाना मतनको बतावै हैं और आँधर जे जीव ते ग्रहण करै हैं साहब को नहीं जानै हैं जैसे बेश्या की लगन, वह तो नाना पुरुषते रमै है एकको जानतही नहीं है ऐसे नाना उपासना मानै हैं सो साहब को मानतही नहीं हैं ॥ २ ॥ सो ते जीवन को