पृष्ठ:बीजक.djvu/५५६

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(५१२) बीजक कबीरदास । हे रामनामके रमनवारे हंसा ! जस कियो तस पायो हमारो दोष । जनि देहु ॥ ८ ॥ अगम जो राम नाम ताको काटि गम कीन्हों अर्थात् साहब मुख अर्थ छोड़ि जगत् मुख अर्थ कियो फिरि वहीं रामनाम को ब्रह्ममुख अर्थकरि सहज व्यापार कहे सहज समाधि लगावनलगे कि, हमहीं ब्रह्म हैं ॥ ६ ॥ हे रामनाम के रमनवारे ! रामनाम धनको बनिन करिकै रामनाम अमोल बस्तु लादेई परंतु अर्थ न जान्यो । जो 4 बनिजहु लाहु ? पाठहोइ तों यहअर्थ है अगम जो है रामनाम ताकी काटिकै कहे बीजक में बनाईंकै तुमको गमकै दियो कहे सुगम कैदियो समुझनलगे रामनाम को व्यापार तुम को सहन कै दियो अर्थात् रामनाम की सहज समाधि तुमको कोउ बतायदियो सों रामनाम अमाल है ताकी बनिज करो औ वही धनको लादो यह सच है। और सब झूठहै ॥ १० ॥ पाँच लदनवा लादे हो रमैयाराम । नौ बहिया दश गोन हो रमैयाराम ॥ ११ ॥ पांच लदनवा आगे हो रमैयाराम । खाखरि डारिनि खोरि हो रमैयाराम ॥ १२ ॥ शिर धुनि हंसा उड़े चले हो रमैयाराम ।। सरवर मीत जोहार हो रमैयाराम ॥ १३ ॥ ताही ते पांच लदनवा लादे अर्थात् पांचभौतिक शरीर धारण कीन्हे ते जौनेमें दशौ गोन दश इंद्रिय हैं तामें मन बुद्धि चित्त अहंकार पांचौ प्राण ते बहिया हैं अर्थात् बहनवारे हैं चलावन वारे हैं ॥ ११ ॥ खाखर जो शरीर तीन जब खोरिमें डारेनि अर्थात् नाश भयो तब पांच लदनवा कहे वही पांचभौतिक शरीर आगे मिलै है। पांच लनवा गिरि परे पाठ होइ तो यह अर्थ है कि जब इंद्रिय न रहिगई तब शरीरौ छुटिजाई है ॥ १२ ॥ सो हंसा जो जीव है सो शिरधुनिकै सरवर जो शरीर मीत तौने को जोहारिकै उड़ि चलै है ॥ १३ ॥