पृष्ठ:बीजक.djvu/६३५

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= साखी । ६ ६९७) फहमै आगे फहमै पाछे, फहमै दुहिने डेरी ।। फहमै परजो फइम करत है, सोई फहम है मेरी॥१८॥ गुरुमुख । फहमजा है ज्ञानस्वरूप ब्रह्म सोई आगे है सोई पाछे है सोई दहिने है सृई। डेरी कहे बायें है अर्थात् सर्वत्रपूर्णहै सो यहजेफहमहै ज्ञानस्वरूप ब्रह्म तैनके ऊपर ब्रह्मयाहूके परे साहब है फहम करै है कि वह ज्ञानरूप उनहीको प्रकाश हैं याहूके परे साहब हैं तैन फहम मेरी है कहे वहज्ञान मेरोहै ।। १८५ । । हद चलै सो मानवा, बेहद चलै सो साध ॥ हद बेहद दोनों तजै, ताको मता अगाध ॥ १८६॥ इद जो चलै है सो मानवाहै कहे उनको मान कहे प्रमाण है अर्थात् जो । जौने देवता की उपासना कियो सो तौने देवता के लोकगये वाको वनैभर प्रमाणहै वतनैज्ञान होइहै औ जे बेहद् चलै हैं ब्रह्ममें लगे हैं ते साधुहैं जो ब्रह्मको साधन करिकै सिद्ध करिलेइ सो साधु लो हद जो है सगुणसंसार औ बेहद है निर्गुण ब्रह्म ये दोनों को जे तनिकै निर्गुण सगुणके परे एरम पुरुष श्री रामचन्द्र के सेवक द्वैरहे हैं ऐसे में रामोपासक हैं तिनहीं के मन अगाध ॥ १८६ ॥ समुझैकी गति एकहै, जिनसमुझा सव ठौर ॥ | कह कबीर जे बीचके, बल कहि औरै और ॥१८॥ जे रामोपासक निर्गुण सगुणको समुझिकै ताहूते परे साहब को जान्यो तिनकी गति एकहै कहे एक साहबहीको सबठौर निर्गुण सगुणमें समुझे हैं। कबीरजी कहै हैं कि जे बीचके हैं ते और और उपासना करै हैं और और ज्ञानकरै हैं औ आपने आपनेदेवतनमें बलकै हैं कि येई सबके मालिक हैं॥ १८७॥ राह बिचारी का करै, पथिक न चलै विचारि ॥ आपन मारगछोड़िकै,फिरहि उजारि उजारि॥१८८॥ !