पृष्ठ:बीजक.djvu/६४८

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(६१०) बीजक कबीरदास ।। कबीरजी कहै हैं कि आस्तिकमत जो मैं सबको बताऊहीं तो कोई नहीं पति आय काहेते कि गुरुवा लोगनकी बाणी मानि उनको सिद्धनानै हैं या नहीं। जानै हैं कि ये आस्तिकनहीं हैं साहब को नहीं जानै हैं इनते संसार में छूटैगों साहबके जाननवारे जे सावे साधु हैं तिनहीं ते संसार छूटै है काहेते हीरा ही रैते बेधि जाय है ॥ २१९ ॥ सोना सजन साधु जन, टूटि जुरै सौ बार ॥ दुर्जन कुम्भ कुम्हारके, एकै धका दरार ॥ २२० ॥ सज्जन साधुनन ने हैं ते सोना है जो सैकरनवार टूटै फिरि फिरि जुरिजाये। ॐ दुर्जन जे हैं कुम्हारके कुम्भ कहे घड़ा जो फूटा तो फिरि नहीं जुरै है अर्थात् जो साधुजन कहूं मागमें भूलिहूजायँ परंतु फिरि समझाये :वाहीमें लगिनाय खोटी राह छोड़ि देइ हैं औ दुर्जन जे, हैं ते घड़ासे फूटिजायहैं अर्थात् जौने कुसंगमें परे तौनेहीके भये फिरि नहीं बूझ हैं ॥, २२० ॥ काजर केरी कोठरी, बूड़न्ता संसार । | बलिहारी तेहि पुरुषकी, पैठिकै निकसन हार॥२२१॥ यह कानर कै कोठरी मायाहै तौने में यह संसार बूड़िगयो सो वह जीवकी बलिहारी है जो मायामें आय निकसि जाय ॥ २२१ ॥ काजरही की कोठरी, काजरहीका कोट । तौभी काराना भया, रहाजा टिहि अट ॥ २२२॥ | गुरुमुख । साहबकै है हैं कि यह माया काया काजरकी कोठरी है याके कानरहीके कोट बने हैं नाना आशा नानामत माने हैं सो यद्यपि ऐसेहू रह्यो परंतु मोको रक्षक माने रह्यो मेरी भक्तिकी ओट ही ओट बचि गयो अर्थात् मायाते बचिगये२२२ अर्बखर्व लौं दर्व है, उदय अस्तलौं राज ॥ |... भक्ति महातम ना तुलै, ये सब कौने काज ॥ २२३॥