पृष्ठ:बीजक.djvu/७३२

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(७०४ ) बघेलवंशवर्णन । सुखयुत बीतिगये कछु काला । लाट हूनपति जौन विशाळा ॥ लै बहु सैन्य कानपुर आयो । सब राजनको खत लिखवायो ।। आवहिं इतै भेटके हेतू । सुनि सुनि सब नृप गये सचेतू ॥ दोहा-महाराज रघुराजको, लिखत भयो खत सोइ ॥ मुलाकात मम करन्दको, अवै इत मुद मोइ ॥ ८१ ।। तहाँ चलन नृप कियो तयारी । बरने तब हुँ इतै नर नारी ॥ दीनबंधु तबहू मतिवाना । कह्यो पैज करि वचन प्रमाना । चलिये भूप संदेह न कीजै । विना चलहीं भय गुणि लीनै ।। सत्य विचारि वचन तिनकेरे । काहूके दिशि तनक न हेरे ॥ लै कछु सैन्य चैन भरि भूरी । चल्यो कानपुर यद्यपि दूरी ।। मगमें बहु जन किये निवारण । लाटबोलाये है कछु कारण ॥ : गुणि हरि उर भरोस नृप भारी । काहू और न नेऊ निहारी ॥ दीनबंधुके मग ज्वर भयऊ । सो न मानि कछु नृप सँग गयऊ । दोहा-जाय सैन्य युत कानपुर, डेरा सुरसरि तीर॥ | करत भयो सुनि हुँनपति, भयो मुदित भतिधीर ॥८२॥ दगी मुकामी फेरि सलामी । बँधी पंचदश जैन मुदामी ॥ पैदर अरु असवारन काहीं । दिय नृप अरुण पोशाक तहांहीं ॥ फूलसिरी अरुणै गज भासी । सूही साज बाजिगण गासी । सरिस वसंत सैन्य सुठि सोही । लखि लाख भूपहु गे मन मोही ।। लाट लखनऊ ६ जब आयो । मुलाकात हित नृपहि बोलाये ॥ मुख्य अमात्य जौन अभिरामा । दीनबंधु है जाके नामा ॥ श्रीरघुराज ताहि लै संगै । गये सैन्य युव भेट उमंगै ॥ यक साहेब लैकै अगवाई । साहर भूपहि गयो लेवाई ॥ दोहा-शिविर हुँनपतिके निकट, पहुंचे जब रघुराज ॥ पाय लाट साहब खबरि, आगू लै महाराजं ॥ ८३ ।।