पृष्ठ:बीजक.djvu/८०

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रमैनी । (२९) रहतभयो सो ब्रह्म अकर्तहै निर्धमॅहै, मनमायादिकते रहित है, देशकाल बस्तु परिच्छेदते शून्य। सो ऐसे ब्रह्मको जीवत्वको भ्रम कहतेभयो जों कहा वह ब्रह्म जीवत्वको धारणनहींकियों वाको ते भ्रमही नहीं है काहेते कि ।। सत्यंज्ञानमनंतंब्रह्म ॥ यह श्रुतिलिखे हैं वाको भ्रमतो संभवितै नहीं है भ्रमतो जीवनको भयो हैं, जिनको ब्रह्मको विज्ञान, तिन को न जीवत्व है न संसार है । जैसे अज्ञानी जीवनको संसारही देखिपरै है तैसे ज्ञानी जीवनको ब्रह्मही देखिपरै है । तै सुनौ तुमही दुइजाब कहाही एक अज्ञानी जीव एकज्ञानी नीव । सो अज्ञानी जीवको या कह्यो कि संसारही देखाय है सो ब्रह्मके तौ अज्ञान होताहीं नहीं है, जाते आपको जीवत्व मानिकै संसारीहाय । जो कहो मायाते शबलित हुँकै ब्रह्मही जीव होइ संसारी है जाय है तौ माया को तौ मिथ्या कहौंहीं । जायासामाको अर्थः मिथ्यैव । फिर ब्रह्मको तौ ज्ञानस्वरूप कहि आयेहीं कि ब्रह्मको मायाको स्पर्श नहीं होय हैं, ब्रह्म जीव नहीं होइ सकै है, तौ ज्ञानी अज्ञानी जीव औ संसार वह ब्रह्मभ्रम कारकै कैसेभयो । जो कहो जीव औ संसार या हई नहीं है तौ पुराण औ कुरान वेदांतका को उपदेश करै है । तेहिते तुम्हारो समाधान किया नहीं होयहै । जीव ब्रह्म कबहूँ नहीं होइ है । सनातनते जीव भिन्न है औ ब्रह्मभिन्न । काहेते साहबके लोकप्रकाश ब्रह्ममें अनादिकालतें समष्टिरूप ते जीवरहै है, ताको साहबदयाल दयाकारकै सुरतिदियो कि, मोमें सुरति लगावै तौ मैं हंसरूप दैकै अपने पास लैआऊ सो अनादि कालते श्रीरामचन्द्रको जनबई न किये यां मनादिकनको कारण उनके रहबही करै, वहीं सुरतिपायकै संसारी द्वैगये । जो साहबको जानते तौ संसारमें ना आवते । जब मनादिक भये तब अनुभव ब्रह्मको उत्पन्नकियो सो यहतो साहबको है सो साहबको ना जान्यो आपहीको ब्रह्म मान्यो यही धोखाहै । और जीव सनातन है सर्वत्रपूर्ण लोकप्रकाशरूप ब्रह्म नहींहोय है वही प्रकाशमें अचल समष्टि रूपते भरो रहैं है तामें प्रमाण ॥ "नित्यःसर्वगतः स्थाणुरचलोयंसनातनः ॥ इतिगीतायाम् ॥ ॐ लोकप्रकाश व्यापक ब्रह्मते जीवते भेदहै तामें प्रमाण ॥ “सत्यआत्मासत्यजीवः सत्यं भिदः सत्यंभिदः’’ |औ अज्ञानहूते ब्रह्ममें लीन होयहै तबहूँमाया धरिलै आवै है।