पृष्ठ:बीजक.djvu/९५

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(४४) बीजक कबीरदास । नलगे कि अगमहै अपारहै काहेते कि नानामत तिनमैवेदकुरानको प्रमाण सब मैहै सो एक सिद्धांतमें निश्चय काहूकी न होत भई अथवा अगम अपार जो धोखा ब्रह्मदै सोई सबके सिद्धांतमें फैलगयो कहै ब्रह्मही रहिगयो अर्थात् अपने अपने मतनमें सिद्धांत वही ब्रह्महीको करत भये । सो वह धोखा तो अगम अपारहै काहूको मिलबइ नहीं कियो ॥ ६ ॥ चहुंयुगभक्तनबाँधलबाटी ।समुझिनपरैमोटरीफाटी॥ ६॥ भैभै पृथ्वीचहुंदिशिधावै । सुस्थिरहोयनऔषधपावै ॥७॥ चारिहुयुगके नाना देवतनके जेभक्तहैं ते अपनी अपनी राह संसार छुटवेकी बांधत भये तबहूं वह सिद्धांत न समुझि परयो काहेते कि बहुत राह द्वैगई रामनामके संसार मुख अर्थमैहै तो सब मतबनेही हैं परंतु साहबमुख जो अर्थ है रामनामको ताको भूळही गये । भरमकी जो है मोटरी सो फटी कहे पण्डित भये पढ़े भरम नाशकी उपायकरनलगे अर्थात् शास्त्रनके अर्थ विचारनळगे यही फटिबो है सो वह राह तो पाई नहीं बहुत राह द्वैगई तब नाना प्रकारकी शंकाउठी भरम फैलिरह्यो नाना शाखनके सिद्धांतनमें वेदको प्रमाण सबहीमें भिलेहैं काको सांच कहैं काको असच कहैं ताते शास्त्रनमें एको सिद्धांत न करिसके ६ तब जीवनेहैं ते भै भै पृथ्वीमें चारों ओर भ्रमन लो खोजनलगे एकहु मतको सिद्धांत नहीं पावैहैं सो यहरोगकी औषध, जो साहबको जानै है ताही, बिरले संतके पासमें है सो तौ पावत न भये औरे और में लगे ताते स्थिर न होत भये ॥ ६ ॥ ७ ॥ होयभिस्तजोचितनडोलावै ।खसमैंछोड़िदोजखकोधावै८॥ पूरुवदिशाहंसगतिहोई । है समीप संधि बूचैकोई ॥ ९ ॥ जो चित्त न डोलावै स्वधर्ममें चकै तौ भिस्त जो स्वर्ग सो होय है अथवा नौ । ने जौने देवतनकी उपासना करैहै तिनके लोकजायहै अथवा यज्ञपुरुषकी आराधना करिकै स्वर्गनायहै औ खसम कहे मालिक ऐसे जे श्रीरामचन्द्र तिनको