पृष्ठ:बीजक.djvu/९६

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रमैनी । (४५) | मुंलाईंकै सब जीव दैरै हैं मुक्तकहते होयँ । दोजख जो नरक है तोहीमें परैहैं । इहांस्वर्गहूको नरकही मानिकै कहैं काहेते कि खसमके भूले जो स्वर्गहू जायगो तौ दुःखही पावैगो आखिर गिरिही परैगो ॥ ८ ॥ पूर्व दिशा कहे सबके पूर्व जब शुद्धजीव रह्योहै कहे जब शुद्धद्वैकै अपनेस्वस्वरूपको चीन्है। तब साहब हंसस्वरूप देय है । सो वा साहबको बिचार कर्मके बाहिरेहै सो याकी जो संधिहै कहे बिचारहै सो समीपही है । जो अपने स्वरूपको चीन्है त साहब हंसरूप देवै करै परन्तु बूझत कोई कोई है ॥ ९ ॥ भक्तौभक्तिनकीनशृंगारा । बुड़िगयेसवमांझहिधारा ॥१०॥ ज्ञान मिश्रावाले जेभक्तहैं ते भक्तिनि जो माया तेहिते श्रृंगार करतभये कहे बिचार करतभये कि हमहीं ब्रह्महैं । वह मनकी धारामें बूड़िगये । कहां बूड़े ? कि यहसब मिथ्याहै यहकहतकहत एक अनुभव सिद्धांतराख्यो सो अनुभवजीव को है ताते मनते भित्र नहीं है वही मनकी मांझ धारामें बुड़िगये ॥ अथवा साहवको छोड़िकै जे नाना देवतनके भजन कैरै हैं ते भक्त भक्तिनि कहावै हैं ते साहबका तो न जान्यो श्रृंगार करतभये कहे नानावेष बनावतभये कोई छिद्रनांकोकी ओर चंदनदियो कोई मृत्तिका दियो कोई राख लगायो इत्यादिक नानावेष बनावत भये ते सब संसाररूपी संमुद्रकी मांझ धारामें बूड़िगये।॥१०॥ साखी ॥ विनगुरुज्ञानै द्वन्द्रभो, खसमकही मिलिबात ॥ युगयुग कहवैया कहै, काहू न मानीजात ॥११॥ खसम ने परमपुरुष श्रीरामचन्द्र हैं ते मिलीबात कही कहे अपना रामनाम बतायो तामें बैअर्थ रह्यो एकसाहबमुख एकसंसारमुख सो आदिमङ्गल में लिखिआये हैं । सोसबते श्रेष्ठ गुरुसाहब तिनको ज्ञान तो नहीं भयो संसारमुख अर्थ ग्रहण कियो ताते द्वन्दकहे जन्ममरण दुःख सुख स्त्री पुरुष ज्ञान अज्ञान इत्यादिक संसारमें होतभयो सो कबीरजी कहैहैं कि युगयुगमें कहनहार जो मैंह, कबीर सो कह्यो मेरीकही बात काहूसों नहीं मानी जातहै ॥ ११ ॥ इतिपँचईरमैनीसमाप्तम् । -