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(४६) बीजक कबीरदास । अथ छठी रमैनी। | चौपाई। वर्णहुं कौनरूप औ रेखा । दूसर कौन आय जो देखा १ औ ओंकार आदिनहिंवेदा । ताकर कहौंकौन कुलभेदा २ नहिंतारागणनहिंरविचंदा । नहिंकछुहोत पिताके विंदा ३ नहिंजलनहिथलनहिथिरपवनाकोधरैनामहुकुमकोवरना नहिंकछुहोतदिवसअरुराती । ताकरकहहुकौनकुलजाती साखी ॥ शून्यसहज मनस्मृतिते, प्रकटभई यकज्योति ॥ बलिहारी तापुरुष छवि, निरालंब जो होति ६॥ वर्णहुंकौनरूपऔरेखा । दूसरकौन आय जो देखा १ औ ओंकार आदि नहीवेदा । ताकरकहौंकौनकुलभेदा २ . वह जो अनिर्वचनीयहै ताको कौनरूप रेखावर्णनकरौं मैंहीं नहीं बर्णन करि सकौंहीं है। दूसर कौन आयजीदेख्यो ॥ १ ॥ प्रणवको वेदहू नहीं जाने हैं। काहेते कि प्रणव एकाक्षरब्रह्मवेदनको आदि सो त प्रणवहू नहीं रह्यो ताहूको आदि है उसको कौन कुल भेद कहीं ॥ २ ॥ हिंतारागणनहिंरविचंदा । नहिंकछुहोतपिताकेबिंदा ३ नहिंजलनहिथलनहिथिरपवनाकोधरैनामहुकुमकोबरना नहिंकछुहोतदिवसअरुराती । ताकरकहहुँकौनकुलजाती न तारागण न सूयं न चंद्रमा न पिताको बिंदु एक नहीं रहे जाते सब उत्पत्तिहै ॥३॥ पृथ्वी , तेज, वायु आकाश ये एक नहीं रहे तहां कौन नाम धरतभये ॐ काको हुकुम वर्णन करत भये ॥ ४ ॥ औ तहां न दिवस होत भयो न रात्रि होत भई ताकी कौन कुलजाति कहौं ।। ५ ।।