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पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/१०९

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A भवन १.११० बीजक मूल काल धेरै हैं खासाबाजी है संसार कवीरा । चित, चेति डारो पांसा ८॥ 1 शब्द ॥ १० ॥ संत महंतो सुमिरो सोई । जो काल फाँस ते वंचा होई ।। दत्तात्रेय मर्म नहिं जाना । मिथ्या है । साधु भुलाना ॥ सलिल मथि घृतकै काढिन । ताहि समाधि समाना ॥ गोरख पवन राखि नहिं । जाना । योग युक्ति अनुमाना || रिद्धि सिद्धि संजम बहु तेरा । पार ब्रह्म नहिं जाना ॥ वशिष्ठ श्रेष्ठ विद्या संपूरण ! राम ऐसे शिष्य शाखा ॥ जाहि रामको कर्ता कहिये । तिनहुँ को काल न राखा ॥ हिंदू कहें हमहिं ले जारों । तुरुक कहें। हमारो पीर ।। दोऊ प्राय दीन में झगरें । ठगढ़े देखें हंस कबीर ।। ६०॥ • शब्द ।। ६१॥ तन धरि सुखिया काह न देखा । जो देखा। जो दुखिया।। उदय अस्तकी बात कहत है। सबको Hirrrrrrrrrrrrrrartmritrar