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बीजक मूल ११६ · उड़ि गये हंस काया कुम्हिलानी ॥ काग उड़ावत । भुजा पिरानी । कहहिं कवीर यह कथा सिरानी१०७ ॥ . शब्द ॥ १०७॥ खसम विनु तेली को वैल भयो। 1 बैठत नाहिं साधुकी सङ्गतानाधे जन्म गयो॥ वहि वहि मरहु पंचहु निज स्वारथ । यमको दंड सह्यो । धन दारा सुत राज काज हित । माथे भार गह्यो । खसमहिं छाँड़ि विषय संग रातेव । पाप के वीज बोयो । झूठी मुक्ति नर आस जीवन की। उन्ह प्रेत को जूंठ खयो । लख चौरासी जीव जंतु में । सायर जात वह्यो।कहहिं कवीर सुनो हो संतो। उन्ह श्वानों की पूँछ गह्यो । १०७ ।। शब्द ।। १०८॥ अब हम भैलि बहुरि जल मीना। पूर्व जन्म तपका मद कीन्हा। तहिया मैं अछलेउँ मन बैरागी॥ तजलेउँ लोग कुटुम राम लागी तजलेउँ मैं काशी. मति भई भोरी । प्राण नाथ कहु का गति मोरी ॥ KARAAAAAAAMARRIA H