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१. १२० वीजक मूल हमहिं कुसेवक कि तुमहिं अयाना । दुइमा दोष काहि भगवाना ।। हम चलि अइली तुम्हरे शरणा। कितहुँ न देखों हरिजी के चरणा। हम चलि अइली 1 तुम्हारे पासा । दास कबीर भल कैल निरासा १०८ शब्द ॥१०६॥ 1 लोग बोले दूरि गये कबीर । ये मति कोई : कोई जानेगा धीर ॥ दशरथ सुत तिहुँ लोकहि । जाना । राम नाम का मर्म है पाना । जेहि जीव जानि परा जस लेखा ॥ रजु का कहे उरग सम। । पेखा ।। यद्यपि फल उत्तम गुणजाना । हरि छोड़ि। मन मुक्तिउन माना ॥ हरि अधार जस मीनहिं । नीरा ॥ ौर जतन कछु कहें कबीरा ॥ १०६ ॥ शब्द ॥ ११०॥ आपन कर्म न मेटो जाई ।। कर्मका लिखा मिटे घों कैसे । जो युग। कोटि सिराई । गुरु बसिष्ठ मिलि लगन सुधायो।। । सूर्य मंत्र एक दीन्हा । जो सीता रघुनाथ विश्राही। te tnerateey