पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/१२३

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A AAAAAAAAAAprint १२४ * वीजक मूल माँई श्रापुहि मानी ।। झाई में भूलत इच्छा कीन्ही। इच्छाते अभिमानी ॥'अभिमानी कर्ता द्वै बैठे। नाना ग्रन्थ चलाया ॥ चोही भूल में सब जग भूला । भूलका मर्म न पाया॥ लख चौरासी भूलते कहिये। भूलते जग विटमाया॥जो है सनातन सोई भूला।। अब सो भूलहिं खाया ॥ भूल मिट गुरु मिले। पारखी । पारख देहि लखाई ॥ कहहिं कबीर भूल की औषध । पारख सब की भाई ॥ ज्ञान चौतीसा। ____ॐ कार अादि जो जाने । लिखि के मेटै ताहि सो माने ॥ ॐ कार कहें सब कोई ॥ जिन्ह । यह लखा सो विरला होई । कका कँवल किर्ण मों पावै । शशि विकसित संपुट नहिं श्रावै ॥ तहाँ कुसुम रंग जो पावै । श्रोगह गहिके गगन रहावै । ॥१॥ खखा चाहै खोरि मनावै । खप्तमहिं छाड़ि। दहौ.दिशिधावै ।। खसमहिं छाडि छिमा हो रहिये।। होय न खीन अक्षय पद लहिये ॥२॥ गगा। AAAAALHARMALE