पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/१४

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  • TYPETY

वीजक मूल * कैसहु कै मोहिं मानुप जाना ॥ एकसे ब्रह्मै । पंथ चलाया । एकसे हंस गोपालहिं गाया एकसे शम्भू पंथ चलाया । एकसे भूत प्रेत मन लाया ॥ एकसे पूजा जैनि विचारा । एकसे निहुरि। निमाज गुजारा ॥ कोइ काहुका हटा न माना। मूंग खसम कबीर न जाना ॥ तन मन भजि रहु । 'मोरे भक्ता । सत्य कबीर सत्य है वक्ता ॥ आपुहि 'देव आपुहै पाँती । अापुही कुल श्रापुहें जाती। सर्वभूत संसार निवासी आपुहि खसम अापु सुख- ‘बासी ॥ कहइत मोहि भयल युगचारी । काके आगे कहाँ पुकारी ॥

  • साखी-साँचहिं कोई न माने, भूलहि के सँग जाय।

• झूठहि झूठा मिलि रहा, अहमक खेहा खाय ॥ १४ ॥ रमैनी ॥१५॥ ... वोनई वदरिया परिगौ सन्झा । अगुवा भूला बन बँड मंझा ॥ पिया अंते धनि अंतै रहई ।। । चौपरि कामरि माथे गहई ॥ KakkarAAAAAAAAAAAAKAR R