सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/१५१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

११५२ बीजक मूल * नहाने को तीरथ घना मन बौरा हो । पूजवे को बहु देव समुझि मन बौरा हो । बिनु पानी नर वूडहिं मन वौरा हो । तुम देकेउ राम जहाज समुझि मन बौरा हो ।। कहहिं कबीर जग भर्मिया मन बौरा हो । तुम छाडहु हरिकी सेवा समुझि मन वौरा हो । वेलि। बेलि ॥१॥ हंसा सस्वर शरीर में हो रमैया राम ॥ जागत चोर घर मूसहिं हो रमैया राम ॥ जो जागल सो भागल हो रमैया राम ॥ सोवत गैल वियोग हो रमैया राम ॥ श्राजु बसेरा नियरे हो रमैया राम ॥ काल बसेरा बड़ि दूर हो रमैया राम ॥ जइहो विरीने देश हो रमैया राम ॥ नैन भरोगे हरि · हो रमैया • राम ॥ त्रासमथन दधिमथन कियो हो रमैया राम ॥