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पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/१५९

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TATTOn" १.१६० बीजक मूल जिन्ह जिन्ह शब्द विवेकिया। तिनका सरिंगो काज शब्द हमारा श्रादि का । पल पल करहूँ याद ।। अंत फलेगी महली । ऊपर की सब बाद ॥७॥ जिन्ह जिन्ह सम्मलना किया। अस पुर पाटन पाय ॥ । झालि परे दिन प्राथये । सम्मल कियो न जाय यहाई सम्मल करिले । आगे विपई बाट । स्वर्ग विसाहन सब चले । जहाँ वनियाँ ना हाट ! जो जानहु जीव ापना । करहु जीव को सार ।। जियरा ऐसा पाहुना । मिले न दूजी बार ।। १०॥ जो जानहु जग जीवना । जो जानहु सो जीव ।। पानि पचावहु आपना । पानी माँगि न पीव ११ ॥ पानि पियावत क्या फिरो । घर घर सायर बारि ॥ तृपावन्त जो होयगा । पीवेगा झसमारि ॥ १२ ॥ हिंसा मोती विकानिया । कंचन थार भराय ॥ जो जाको मर्म न जाने । ताको काह कराय ॥१३॥ हंसा तू सुवर्ण वर्ण । का वर्गों में तोहि ॥ तरिवर पाय पहेलि हो । तवे सराहों तोहि ॥ १४ ॥