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पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/१६०

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1 ११ वीजक मूल * । हंसा तूतो सबल था । हलुकी अपनी चाल ॥ रंग कुरंगे रगिया । किया और लगवार ॥१५॥ । हंसा सरवर तजि चले । देहे परिगौ सून ॥ . कहहिं कबीर पुकारि के । तेहि दर तेही थून ॥१६॥ । हंस वकु देखा एक रंग । चरें हरियरे ताल ॥ । हंस क्षीर ते जानिये । बकुहि घरेंगे काल ॥ १७॥ . | काहे हरनी दूबरी । येही हरियरे ताल । लक्ष अहेरी एक मृग । केतिक टारों भाल ॥ १८॥ । तीन लोक भौ पीजरा । पाप पुन्य भौ जाल ॥ सकल जीव सावज भये । एक अहेरी काल ॥१६॥. लोभे जन्म गँवाझ्या । पापै खाया पून ॥ साधी सो प्राधी कहें । तापर मेरा खून ॥ २०॥ आधी साखी शिर खड़ी । जो निरुवारी जाय ॥ क्या पंडित की पोथिया। रात दिवस मिलि गाय॥२१॥ पांच तत्त्वका पूतरा । युक्ति रची में कीव ॥ मैं तोहि पूछौं पंडिता । शब्द बड़ा की जीव ॥२२॥ पांच तत्व का पूतरा । मानुष रिया नांव ।।।