पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/१६१

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HAMAKAmeaniraumataram.xxxanema १६२ वीजक मूल * एक कलाके पीछरे । विकल होत सब गंव ॥ २३ ॥ रंगहिते रंग ऊपजे । सब रंग देखा एक ।। कौन रंग है जीविका । ताकर करहु विवेक ॥२४॥ जाग्रत रूपी जीव है । शब्द सोहागा सेत ॥ जर्द बुंद जलकुकुही। कहहिं कबीर कोई देखा|२५ ई. पांचतत्वलेयातनकीन्हा । सोतन लेकाहिलेदीन्हा॥ कर्महिकेवशजीवकहतहै। कमहिकोजीव दीन्हा।।२६॥ : पांच तत्व के भीतरे 1 गुप्त वस्तु प्रस्थान ॥ विरला मर्म कोई पाइहैं। गुरु के शब्द प्रमान।।२७ाई असुन्न तखत अडि अासना । पिंड झरोखे नूर ॥ जाके दिलमें हों बसों। सेना लिये हजूर ॥ २८ ॥ हृदया भीतर पारसी । मुख देखा नहिं जाय । मुख तो तबही देखिहो । जब दिलकी दुविधा जाय२६॥ गांव ऊंचे पहाड़ पर । श्री मोटा की बाँह ॥ कवीर अस ठाकुर सेइये । उवरिये जाकी छांह||३०॥ जेहि. मारग गये पंडिता । तेई गई वहीर । ऊंची घाटी रामकी । तेहि चढ़ि रहे कबीर ॥ ३१॥ L444144MAAMAA