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MARANAMA BARSA .१६४ वीजक मूल के ऐसो तप्त अंगार है । ताहि चकोर चवाय ॥ ४०॥ चकोर भरोसे चन्द्रके । निगलै तप्त अँगार कहें कबीर डाहे नहीं । ऐसी वस्तु लगार ॥११॥ झिलि मिलि झगरा झूलते । वाकी त्रुटि न काहु।।। 'गोरख अटके कालपुर । कौन कहावे साहु ॥ ४२ ॥
- गोरख रसिया योगके । मुए न जारी देह ।।
. मास गली माटी मिली । कोरो माजी देह ॥१३॥ 'बनते भागि बेहडे परा । करहा अपनी वान ।। वेदन करहा कासो कहे । को करहाको जान ॥४४॥ - बहुत दिवस ते हीडिया । शून्य समाधि लगाय ॥
- करहा पड़ा गाड़ में । दूरि परा पचिताय ।। ४५ ॥
कबीर भरम न भाजिया । बहुविधि घरिया भेष ॥ई - साई के परचाक्ते । अंतर रहि गई रेप ॥ १६ ॥
- विनु डाँडे जग डांडिया ! सोरठ परिया डाँड ।।
+ बाट निहारे लोभिया । गुरते मीठी खाँड ।। १७ ॥
- मलयागिर की वासमें । वृक्ष रहा सब गोय ॥
कहने को चंदन भया । मलयागिर ना होय ॥