पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/१६६

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SHARIRHARAARATikkirtuk ARRRE 3 बीजक मूल * १६७. सुकृत वचन माने नहीं अापु न करे विचार ॥ कहहिं कवीर पुकारि के । सपने गया संसार ॥६६॥ . अागि जो लागि समुद्र मे । धुवां न परगट होय ॥ की जाने जो जरिमुवा । की जाकी लाई होय।।६७॥ लाई लावनहारकी । जाकी लाई पर जरे ।। बलिहारी लावनहारकी । छप्पर बांचे घर जरे॥६॥. बुन्दजो परीसमुद्र में । सो जानत सब कोय ॥ । समुद्र समाना बुन्द में । जाने बिरला कोय ॥६६॥ जहर जिमी दै रोपिया । अमी सींचे सौ बार ॥ कवीर खलक ना तजे । जामें जौन विचार ॥ ७० ॥ ई धौकी डाही लाकड़ी । ऊ भी करे पुकार ॥ अब जो जाय लोहार घर । डाहै दूजी वार ॥७१॥ विरह की अोदी लाकड़ी । सपचै श्री धुंधुवाय ॥ई । दुखसे तवही वांचिहो । जब सकलो जरिजाय॥७२॥ विरह वाण जेहि लागिया । औपध लगे न ताहि ॥ सुसुकि २ मरिमरि जिवै । उठे कराहि कराहि ॥७॥ चित्तण देय समुझे नहीं । कहत भैल जुगचारा॥७॥