पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/१६८

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  • वीज़क मूल * १६६

ताकेसंग न लागिये । घाले वटिया मांझ ॥३॥ प्राणी तो जिभ्या डिगा । छिन छिन बोल कुवोल।। मनके घाले भरमत फिरे । कालहि देत हिंडोलाच्या हिलगी भाल शरीर में । तीर रहा है टूट ।। चुम्बक विना न नीकरे । कोटिपाहन गये छूट ||५|| आगे सीढ़ी सांकरी । पाछे चकना चूर ॥ परदा तरकी सुन्दरी । रही धकासे दूर ॥८६॥1 संसारी समय विचारी । कोइ गृही कोइ जोग ॥ औसर मारे जात हैं । चेत विराने लोग ।। ८७॥ संशय सवजग खंडिया । संशय खडे न कोय ।। संशय खंडे सो जना । शब्द विवेकी होय ॥८॥ बोलन है बहु भांतिका । नैनन किछउ न सूझ ॥ कहहिं कवीर विचारिक । घटघट वानी बूझ ॥८६ मूल गहे ते काम हैं । तें मत भरम भुलाव ॥! मन सायर मनसा लहरी । वहै कतहुँ मत जाव।६०॥ । भँवर बिलम्बे बाग में । बहु फूलन की बास ॥ । (ऐसे) जीव विलम्बे विषय में | अंतहु चले निरासः१