पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/१७५

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karanatakaranewareAntarnak १७६ वीजक मूल

  • साँप बिच्छु का मंत्र है । माहुरहु झारा जाय ॥

विकट नारि के पाले परे । काढ़ि कलेजा खाय १४३ ॥

  • तामस केरे तीन गुण । भँवर लेइ तहाँ वास ॥

- एक डारी तीनि फल | भंटा ऊख कपास ॥१४॥ • मन मतंग गइयर हने । मनसा भई सचान । जंत्र मंत्र माने नहीं । लागी उईि २ खान १४५ 'मन गयंद माने नहीं । चलै सुरति के साथ ॥ महावत विचारा क्या करे । अंकुश नहिं हाथ ॥१४॥

ई माया है चूहडी । श्री चुहडों की जोय ॥

वाप पूत अरुझाय के । संग न काहुके होय १४७ कनक कामिनी देखिके । तू मत भूल सुरंग ।। विछुरन मिलन दुहेलरा । केंचुलि तजत भुवंग १४८.

  • माया के बस में परे । ब्रह्मा विष्णु महेश ॥

— नारदशारदसनकसनंदन। गौरीऔर गणेश॥

  • पीपरएकजो महागंभानि।ताकरमम कोई नहिंजानि॥

डारलंबाय फल कोईन पाय । खसमग्रवतबहुपीघरेजाय॥ साहू से , भी चोखा । चोरहु से भी बुझ । ter + tort+TTPyrartytry