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पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/१७६

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१२ वीजक मूल १७७, .. तब जानोगे जीयरा (जब) मार परेगी तूझ ॥१५॥ ५ ताकी पूरी क्यों परे । गुरु न लखाई वाट ताके बेड़ा बूड़ि हैं । फिरि २ औघट घाट ॥१५२॥ जाना नहिं बूमा नहीं । समुझि कियानहिं गौन॥ अंधेको अंधा मिला । राह बतावे कौन ॥ १५३ ॥ जाका गुरु है अाँधरा । चेला काह कराय॥ अंधे अंधा पेलिया । दोऊ कूप पराय ॥ १५४ ॥ लोगों केरि प्रथाइया । मति कोई पैठो धाय ॥ है एकै खेत चरत हैं। वाघ गधेरा गाय ॥ १५५ ॥ चारि मास घन बर्सिया । अति अपूर सो नीर ॥ पहिरे जड़ तन बख्तरी । चुभै न एकौ तीर ॥१५६॥ गुरुकी भेली जीव डरै । काया सींचन हार ॥ कुमति कमाई वनवसे । लाग जुवाकी लार १५७ २ तन संशय मन सोनहा | काल अहेरी नीत ॥ । एकै डांग बसेरखा । कुशल पूछो का मीत ॥१५८॥ साहुचोर चीन्हे नहीं । अंधा मति का हीन ॥ । पारख विना विनाश है । कर विचारहोहु भीन १५६