पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/१८

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२ वीजक मूल वेपय मोहके फन्द छुड़ाई । तहां जाय जहां ाट कसाई ॥ अहै कसाई •छूरी हाथा । कैसहु । भावे काटौं माथा ॥ मानुप बड़ा बड़ा होय पाया । एकै पंडित सवै पढ़ाया ॥ पढ़ना पढ़ो घरो जनि गोई । नहिं तो निश्चय जाहु विगोई ॥ साखी-सुमिरण करह राम का, छाँड़हु दुख की आस । तर ऊपर धैं चापि हैं, [जस] कोल्ह कोटि पिचोस॥१७॥ रमैनी ॥ १८॥ अदबुद पंथ वर्णि नहिं जाई । भूले राम भूलि । दुनियाई । जो चेतह तो चेतहुरे भाई । नहिं तो जीव यम ल जाई। शब्द न माने कथै विज्ञाना। ताते यम दियो है थाना ॥ संशय सावज वसे । शरीरा । तिन खायो अन बेधा हीरा ।। साखी-संशय सावज शरीर में, संगहि खेले जुआरि । - ऐसा घायल बापुरा, जीवहि मारे झारि ॥१८॥ रमैनी ॥ १९ ॥ अनहद अनुभवके करित्रासा । ई विप्रीति है

  • देखहु तमासां ॥ इहै-तमासा देखहुरे भाई । जह्वा ।

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