पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/१८०

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  • वीजक मूल १८१

'जाको ढूँढत हौं फिरों । ताका परादुकाल ॥१८५॥ ६ कलि खोटा जगाधरा । शब्दं न माने कोय ॥ जाहि कहो हित आपना।सो उठि वैरी होय ॥१८॥ मसि कागद छूवों नहीं । कलम गहो नहिं हाथ ।। चारिउ जुगका महातम । मुखहिं जनाई वात १८७॥ फहम आगे फहम पीछे । फहम दहिने डेरि ॥ फहम पर जो फहम करे । सो फहम है मेरि ॥१८॥ हद चले सो मानवा । वेहद चले सो साध ॥ हद बेहद दोऊ तजे । ताकर मता अगाध ॥१६॥ समुझे की गति एकहै । जिन्ह समुझा सब और ॥ कहहिं कवीर ये वीचके। बलकहिं औरकी और१६० - राह विचारी क्या करे । पंथि न चले विचार ॥ अपना मारग छोडि के । फिरे उजार उजार॥१६॥. मृवा है मरि जाहुगे । मुये की बाजी ढोल ॥ सपन सनेही जगभया । सहिदानी रहिगौवोल१६२.. मूचा है मरि जाहुगे । चिन शिर थोथी भाल ! परेहु करायल वृक्षतर । आज मरेहु की काल १६३ ॥