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पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/१८५

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TATA MATKadak R A RAM korea १८६ * वीजक मूल भक्ति महातम ना तुले । ई सब कौने काज १२८ मच्छ विकाने सब चले । धीमर के दवार ॥॥ अखिया तेरी रतनारी । तू क्यों पहिरा जार २२९ पानी भीतर घर किया, सेज्या किया पताल । पासा परा करीमका । तब मैं पहिरा जाल ॥२३०॥ मच्छ होय नहिं वाँचिहो । धीमर तेरो काल , जेहिं २ डावर तुम फिरो। तहारमेले जाल ॥२३१। विन रसरी गर सकलो वधा । तासो बंधा अलेख । दीन्हा दर्पण हस्तमें । चश्म विना क्या देख २३२ ॥ तु समुझाये समुझे नहीं । हथ अापु विकाय ।। में खेंचत हों आपको । चला सो यमपुर जाय २१३ ॥ नितखरसानलोहघुनछूटे, नितकी गेप्टिमायामोह टूटे ॥२३४॥ लोहाकेरी नावरी । पाहन घरुवा भार ।। शिस्परविष की मोटरी ! चाहै उतरन पार ॥२३५॥ कृष्ण समीपी पांडवा | गले . हिवारे जाय ॥ लोहाको पारस मिले । काहेको काई खाय ॥३६॥ पूख उगे पश्चिम अंथवे । भखे पोनके फूल ! amrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrm