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पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/१८९

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FREE * वीजक मूल * वस्तू अंतै खोजे अंतै । क्यों कर भावे हाथ ।। सजन सोई सराहिए । पारख राखे साथ ॥२४॥ सुनिये सबकी वारता । निवेरिये अपनी ॥ सेंदुरे का सिंधौरा । झपनी की झपनी २४७ ॥ वाजन दे वाजंतरी । कल कुकुही मतिर ॥ तुझे विरानी क्या परी | अपनी श्राप निवेर २४८ ॥ गावे कथे विचारे नाहीं । अनजाने का दोहा।। कहहिंकवीरपारसपर्सेविन। (जस)पाहन भीतर लोहा। प्रथम एकजो हो किया । भया सो बारह वान ।। कसत कसोटी ना टिका । पीतर भया निदान २५०६ कवीरन भक्त विगारिया । कंकर पत्थर धोय ।। अंतर में विप राखि के | अमृत डारिनि खोय २५१ ॥ रही एक की भईअनेककी। विश्या बहुत भतारी ।। कहहिकवीरकासंगजरि हैं। बहु पुरुपन की नारी ।। तन घोहित मन काग है । लख जोजन उडिजाय काहिकेभरमेग्रगमदरिया। कवहिके गगन रहाय २५३ ॥ ज्ञान रतन की कोठरी । तुम्बक दीन्हों ताल ! rrirmirmirmirmire