सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/३४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

. ३ .* बीजक मूल * . ३३ ॥ छलसो मारा ॥ बड़ छल रावण सो गौ वीती। - लंका रहल कंचन की भीती ॥ दुर्योधन अभिमाने ? " गयऊ । पांडवो केर मर्म नहिं पयऊ ॥ माया के डिंभ गयल सव राजा । उत्तम मध्यम बाजन , वाजा॥ छौ चकवे विति धरणि समाना । एकौ जीव, प्रतीति न आना ॥ कहँलो कहों अचेतहि गयऊ ।। चेत अचेत झगरा एक भयऊ ॥ साखी-ई माया जग मोहिनी । मोहिन सब जग धाय । दु हरिचंद सत्तके कारणे । घर घर सोग विकाय ॥ ४७ ॥ रमनी ॥४८॥ मानिक पुरहिं कवीर वसेरी । मद्दति सुनी। शेप तकि केरी ॥ ऊजो सुनी यवन पुर थाना भूगी सुनी पीरन को नामा ॥ एकइस पीर लिखे तेहि ठगमा । खतमा पढ़े पैगम्बर नामा ॥ सुनत, बोल मोहिं रहा न जाई । देखि मुका रहा भुलाई। हवी नवी नवी के कामा । जहँलौं अमल सो सबै हरामा । ruirrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrytest AAAAAAAARAMMiriamkrinamikaniindianRMATHAKHARA