पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/४१

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  • वीजक मूल ।

साखी-गुणातीत के गावते । आपुहि गये मॅपाय ॥ ___ माटी तन माटो मिल्यो । पानहिं पान समाय ६१॥ : रमनी ॥ ६२॥ जो तू करता वर्ण विचारा | जन्मत तीनि दंड अनुसारा ॥ जन्मत शूद्र मुये पुनि शूदा । कृनमः। ३ जनेउ घालि जग दुन्द्रा । जो तु ब्राह्मण ब्राह्मणी । को जाया । और राह दे काहे न अाया ॥ जो तू, तुरुक तुकिनि को जाया । पेटहि काहे न सुन्नति, करांचा । कारी पियरी दूहहु गाई । ताकर दूध देहु । विलगाई । छाँड़ कपट नर अविक सयानी। कहहि । कबीर भजु शारंग पानी ।। ६२ ॥ रमनी ॥ ६३॥ नाना रूप वर्ण एक कीन्हा । चारि वर्ण वै काहु। न चीन्हा ।। नष्ट गये कर्ता नहीं चीन्हा ॥ नष्ट । गये शोरहि मन दीन्हा । नष्ट गये जिन्ह वेद वखाना । वेद पढ़े पर भेद न जाना ॥ विमलख करे नेन नाह सूझा । भया अयान तब किछ । न झा॥ rrrrrrmirmirminoritra