पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/४२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

  • वीजक मूल

— साखी-नाना नाच नचाय के । नाचे नट के भो घट घट है अविनाशी । सुन तरी तुम शेप ॥६३ ॥ रमैनी ॥ ६४ ॥ काया कंचन जतन कराया। बहुत भाँति के मन पलटाया ॥ जो सौवार कहाँ समुझाई । तैयो धरो। छोरि नहिं जाई । जनके कहै जन रहि जाई । नौ । निद्धी सिद्धी तिन पाई ॥ सदा धन जाके हृदया। वसई । राम कसौटी कमतहि रहई ॥ जोरे कसावे । अंत जाई । सो बाउर आपुहि बोराई। साखी-तातेपी कालकी फॉसी । करण न नाम न। जह सा नहॅ सन सिवावे । मिलि रहे धूतहि ॥६४ ॥ . रमैनी ॥६५॥ अपने गुणको अवगुण कहहू । इहै अभाग जो तुम न विचारहू ॥ तूं जियरा बढ़ते दुख पावा । जल विनु मनि कौन संचु पावा ॥ चातृक जलहल आस पासा । स्वाँग धरे भव सागर अा- नाचातृक जलहल भैरै जो पासा। मेघ न बरसे चले उदाता।। राम नाम इहै निजु सारा । औरो झूठ सकल