पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/४३

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४२ * बीजक मूल संसारा ॥ हरि उतंग तुम जाति पतंगा । यमघर कियेहु जीव को संगा।। किंचित है सपने निधि, पाई। हिये न अमाय कहाँ घरों छिपाई ॥ हिये न . समाय छोरि नहिं पारा। झूठा लोभकिछउ न विचारा॥ सुमृति कीन्ह पापु नहिं माना. | तरुवर तर छर चार द्वै जाना । जिव दुर्मति डोले संसारा । ते। नहिं सूझै वार न पारा॥ साखी-अंध भये सब डोलें, कोई न करे विचार ॥ ___कहा हमार माने नहीं, कैसे छूटे भ्रमजार ॥ ६५ ।। १ रमैनी ॥ ६६॥ 1 सोई हित बंधू मोहि भावे । जात कुमारग मारग। लावे ॥ सो सयान मारग रहि जाई । करे खोज। कवहूँ न भुलाई । सो अँठा जो सुतको तर्जई ।। गुरुकी दया राम ते भई ।। किंचित है एक तेज भुलाना ! धन सुत देखि भया अभिमाना॥ । साची-दिया न खतना किया पयाना, मंदिर भया उजार ।। मरिगये सो मरिगये, बाँचे पाचनहार ॥६६॥