पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/४५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

४४ वीजक मूल ३ साखी-जाके दिये गर लागे, सोइ जानेगा पीर ॥ ____ लागे तो भागे नहीं, मुखसिंधु निहार कबीर ॥६८॥ रमैनी ॥६९ ॥ ऐसा योग न देखा भाई । भूला फिरे लिये। गफिलाई ॥ महादेव को पंथ चलावे । ऐसो बड़ो। । महंत कहावे ॥ हाट बजारे लाये तारी । कच्चे। सिद्ध न माया पियारी ॥ कर दते मवासी तोरी। इकर शुदेव तोपची जोरी ॥ नारद कब बंदूक । 1 चलाया । व्यासदेव का च वजाया। करहिं लराई मतिके मंदा। ई अतीत कि तरकस वंदा ।। भये । विरक्त लोभ मन ठाना । सोना पहिरि लजावे, चाना ॥ घोरा घोरी कीन्ह बटोरा । गांव पाय जस है चले करोरा ॥ - साखी-सुन्दरी न सोहे, सनकादिक के साथ ॥ कवक दाग लगारे, कारी हांडी हाय ॥ ६९ ।। रमनी ॥ ७०॥ बोलना कासो बोलिए रे भाई । बोलत हो सब । तत्त्व नसाई ।। बोलत बोलत बादु विकारा । सो