पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/४७

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RRRRRRRRRRRRAAMARRIAREARRAakantanata ४६ वीजक मूल * जाई ।। गोड़ न मूड़ न प्राण अधारा । तामें भभरि । रहा संसारा ॥ दिना सातले उनकी सही । बुद ! अदबुद अचरज का कही वाहिक वंदन करे सर्व कोई । बुद अदवुद अचरज बड़ होई ॥ . . साखी-मूस विलाइ एक संग, कहु कैसे रहिजाय ॥ अचरज एक देखोहो संतो, हस्ती सिंहहि साय ॥ ७२ ।। रमैनी ॥७३॥ 1 चली जात देखी एक.नारी । तर गागर ऊपर है। पनिहारी ।। चली जात वह वाटहि वाटा । सोवन ।

  • हार के ऊपर खाय । जाड़न मरे सपेदी सौरी ।।

खसम न चीन्हे घरणि भइ बौरी ॥ साँझ सकार। दिया ले बारे । खसमहि छाडि संबरे लगवारे।।वाही । के रस निसु दिन रांची। पिया सो बात कहे नहि साँची । सोवत छाँड़ि चली पिय अपना । ई दुख अवधौं कहे केहि सना ।। साखी-अपनी जांघ उघारिक, अपनी कही न जाय ॥ की चित जाने आपना, की मेरों जन गाय ॥ ७३ ।। fundamentalpat ra