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४८ * बीजक मूल * खन धवन नहिं करिया । पेठि पताल नहिं बलि- छलिया ॥ नहिं बलि राजा सो मांडल रांरी । नहिं । हरणाकुश चघल पचारी | बराह रूप धरणि नहिं । धरिया । क्षत्री मारि निक्षत्री नहिं करिया । नहिं । गोवर्धन कर गहि धरिया ।। नहिं ग्वालन संग वन ! वन फिरिया ।। गंडकी शालिग्राम नहिं कूला मच्छ कच्छ होय नहिं जल डोला ॥ दारावती शरीर न छाड़ा । ले जगन्नाथ पिंड नहिं गाड़ा॥ ई सारखी कहहि कपीर पुकारिने, वै पये मंति भूल ॥ जेहि राउ अनुमान के, सोय ल नही स्थुल ॥ ७५ ।। • रमैनी ॥ ७६ ॥ माया मोह सकल संसारा । इहे विचार न काहु । विधारा ॥ माया मोह कठिन है फंदा । करे विवेक सोइ जनवंदा ॥ राम नाम ले बेरा धारा ! सोतो ले। संसारहिं पारा॥ साग्वी-राम नाम अति दुर्लभ, औरते नहिं काम ।। आदि अंत औं युग युग, (मोहि) रामहोवे संग्राम.७६