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पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/५५

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M बीजक मूल। I THHTHHTTTTTTTTTTTTTTTTTTTTTTTTTTTTTTTL शब्द ॥ १॥ सन्तो भक्ति सद्गुर पानी ।। नारी एक पुरुष दुइ जाया । बूझो पंडित । ज्ञानी ॥ पाहन फोरि गंग एक निकरी । चहुँदिशि' पानी पानी ॥ तेहि पानी दुइ पर्वत चूड़े । दरिया' लहर समानी ।। उड़ि माखी तखरको लागी । वोले है । एकै वानी ।। वहि माखी को माखा नाहीं । गर्भ रहा चिनुपानी ॥ नारी सकल पुरुष वे खाये । ताते रहै अकेला ॥ कहहिं कबीर जो अबकी बूझे । सोई। गुरू हम चेला ॥१॥ शब्द ॥२॥ सन्तो जागत नीट न की। काल न खाय कल्प नहिं व्यापे । देह जरा नहिं छीजे ।। उलटी गंग समुद्राहि सोखे । शशि और सूर्यहि ग्रासे । नौ ग्रह मारि रोगिया बैठो । जलमें

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