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पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/७२

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  • वीजक मूल * ७३.

शब्द ॥ २८ ॥ भाई रे गइया एक विरंची दियो है । गइया : भार प्रभार भौ भारी ॥ नौ नारी को पानी पियतु , हैं । तृपा तैयो न बुझाई । कोठा बहत्तर औ लो। लावे । वज्र केवाड़ लगाई ॥ खूटा गाडि दवरि दृढ़ बाँधेउ । तैयो तोर पराई । चारि वृक्ष छौ शाखा वाके । पत्र अठारह भाई ॥ एतिक ले गम कीहिस गइया । गइया अति रे हरहाई ॥ई सातों ओरों में हैं सातों । नौ नौ चौदह भाई ।। एतिक गइया । खाय बढ़ायो । गइया तैयो न अघाई।पुरतामें राति है है गइया । सेत सींग है भाई ॥ अवरण वर्ण किछुइ । नहिं वाके । खाद अखादहिं खाई ॥ ब्रह्मा विष्णु खोजि ले आये । शि सनकादिक भाई ॥ सिद्ध अनंत वाके खोज परे हैं । गइया किनहुँ न पाई ॥ कहहिं कवीर सुनो हो संतो । जो यह पद अर्थावे!! जो यह पद को गाय विचारे।अागे होय निर्वाहे॥२८॥ MARHATARNIMAmARATHIRAAAAAAAthamk