पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/७५

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३७६ वीजक मूल परजा क्या घों करें विचारा ॥ भक्ति न जाने भक्त कहावे । तजि अमृत विप कैलिन सारा ॥ आगे। आगे ऐसेहि बूड़े । तिनहुँ न मानल कहा हमारा । कहा हमार गांठि दृढ़ बांधो । निशिवासर रहियो । हुशियारा ॥ ये कलि गुरु बड़े परपंची । डारि ठगोरी । सब जग मारा ॥ वेद कितव दोउ फंद पसारा । । तेहिं फंदे परु श्राप विचारा ॥ कहहिं कवीर ते हंस न विसरे । जेहिमा मिले छुड़ावन हारा ॥ ३२ ॥ शब्द ॥ ३३ ॥ हंसा प्यारे सरखर तजि कहाँ जाय ।। टेक ॥ जेहि सरवर विच मोतिया चुगत होते । बहु विधि केलि कराय ।। सूखे ताल पुरइनि जल छौड़े । कमल गये कुम्हिलाय ।। कहहिं कबीर जो अब की बिछुरे । बहुरि मिलो कव प्राय ॥ ३३ ॥ शब्द ॥ ३४ ॥ 1. हरिजन हंस दशा लिये डोले । निर्मल नाम चुनी चुनि बोले । मुक्ताहल लिये चोंच लोभावे ।।