पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/७६

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  • वीजक मूल ७७ ॥

'मोन रहे की हरिजस गावे ॥ मानसरोवर तट के वासी । राम चरण चित 'अंत उदासी ॥ काग

  • कुबुद्धि निकट नहिं आवै । प्रति दिन हंसा दर्शन

पावै ॥ नीर क्षीर का करे निवेरा । कहहिं कवीर । सोई जन मेरा ॥ ३४॥ शब्द ॥ ३५ ॥ ' हरि मोर पीउ में राम की बहुरिया । राम बड़ो मैं तनकी लहुरिया ॥ हरि मोर रहटा में रतन पिउरिया । हरिका नाम ले कतति बहुरिया ॥ छौ । | मास तागा बरस दिन कुकुरी । लोग कहें भल कातल वपुरी ॥ कहहिं कवीर सूत भल काता। चरखा न होय मुक्ति कर दाता ॥ ३५ ॥ शब्द ॥ ३६ ॥ हरि ठग जगत ठगौरीलाई । हरिके वियोग कस जियह रे भाई॥को काको पुरुष कौन काकी नारी । अकथ कथा यमदृष्टि पसारी ॥ को काको पुत्र कौनकाको वापा । को रे मरै को सहै संता-