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पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/७९

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HALARAMARHARREARRAHAMARNAMAARAK MEHAR , MARATHIKATHAARAANEERarekkekahik ८० वीजक मूल बिनु । नाम लिये क्या होई ॥ धनके कहे धनिक । जो हो । निर्धन रहेन कोई ।। सांची प्रीति विपय । माया सो। हरि भक्तन को फांसी ॥ कहहिं , कवीर एक रामभजे विनु । बाँधे यमपुर जासी ॥ ४०॥ शब्द ॥४१॥ पंडित देखहु मनमें जानी ॥ टेक॥ ___ कहुधौं छूति कहां से उपजी । तबहिं छूति । तुम मानी ॥ नादे विंद रुधिर के संगे। घटही में घट सपचे ॥ अष्ट कवल है पुहुमी धाया । छूति । कहां से उपजे ॥ लख चौरासी नाना वासन । सो सब सरि भौ माटी । एकै पाट सकल बैठाये | जूति । लेत धौ काकी ।। तिहि जेंवन तिहिं अचवन। तिहि जगत उपाया ॥ कहहिं कवीर ते छूति । विवर्जित । जाके संग न माया ॥ ४१॥ शब्द ॥ ४२ ॥ पंडित शोधि कहो समुझाई । जाते श्रावा गमन नसाई ॥ अर्थ धर्म औ काम मोक्ष कहु । RAMERAMA HTTHY A irtmentatayportantry .