पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/९६

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RMikhikle-ReFulw arha EMARKARRAHAKARMAHARAau AR ७ . बीजक मूल * ६७ मुख गाजे ॥ तूही 'वाजे तूहि गाजे । तूहि लिये कर डोले । एक शब्द मॉ राग छतीसों । अन ई हद बानी बोले । मुख को नाल श्रवण को तुवा ।। सत गुरु साज बनाया । जिभ्या के तार नासिका चरई । माया का मोम लगाया ॥ गगन मंडल में भया .उजियारा । उलटा फेर लगाया ॥ कहँहि - कवीरजन भये विवेकी । जिनजंत्री सों मनलाया ॥ शब्द ॥ ७० ॥ ____जस मास पशुकी तस मास नरकी । रुधिर रुधिर एक सारा जी ॥ पशुका मास भखें सब कोई। । नरहिं न भखें सियारा जी । ब्रह्म कुलाल मेदिनी भइया । उपजि विनसि कित गइया जी॥ मास मछरिया तें पै खइया । ज्यों खेतन मों वोइया जी॥ माटी के करि देवी देवा । काटि काटि जिव देइया जी ॥ जो तुहरा हैं सांचा देवा । खेत चरत क्यों न | लेइया जी ॥कहहिं कबीर सुनो हो संतो । राम नाम k ikRRENAKAREskrit rrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrIN