पृष्ठ:बुद्धदेव.djvu/१०२

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संप्रज्ञात समाधि से वितर्क, विचार, आनंद और स्मिता आदि का क्रमशः निरोध कर निर्वितर्क, सविचार, निर्विचार आदि समा- थियों में होते होते हुए वे असंप्रज्ञात । समाधि में पहुँचे। सद्- वृत्ति का ग्रहण और असदवृत्ति कात्यागकर उन्होंने संप्रज्ञात समाधि (सवितध्यान) लाम किया । फिर क्रमशः सद् और असद् उभय वृत्तियों के विरोध को उपशम कर वे असंप्रज्ञाव अवस्था को पहुँचे । फिर प्रीति और अप्रीति दोनों की उपेक्षा करते हुए उन्होंने

  • सत्रीज समाधि वा निष्पीतक ध्यान लाभ किया । फिर क्रमशः

दुःख और सुख का उपशमन कर वे विशुद्ध निवज समाधि में पहुंचे और उन्हें अदुःखासुखध्यान का आनंद प्राप्त हुआ। ____आपाढ़ की पूर्णिमा की पवित्र रात्रि संसार में सदा आदर की ष्टि से देखी जाने योग्य है। यह वही रात है जिस को उरुविल्व ग्राम के पास महाबोधि वृक्ष के नीचे निर्बीज समाधि में मग्न कुमार सिद्धार्थ को बोधि प्राप्त हुई थी, जिसके कारण वे गौतम से

  • पितर्क विधारानंदाक्षिमतानुगनार संप्रज्ञातः । १ । १७ शीरयचे.

रमिजावस्येव कृपग्रहोतृाहण्यास पु वत्स्यतदंजनठा समापतिः। शब्दार्य ज्ञानविकल्प संकोर्णसपिरिमापतिः । स्मृतिपरिपुदी स्वरुपयन्येधार्थ मात्रनिर्भानानिर्वितर्वा । स्वयैवविचारानियिधारायभूमविषयाव्यारण्यावा 80-83 विरामप्रत्ययाम्वासपूर्ण संस्कारगेपोऽन्यः [प्रसंप्रवृतिः] 91 १८ ।

  • सूरनविपयत्वंचालिगंपर्यवसानम् । वा एप.सवीड. समाधिः । निर्वि-

पारवैयारचयात्मप्रसादः। शृतंभरातत्रज्ञा। श्रु तासनानप्रज्ञाम्यांमन्द विपयाधिशेपार्यत्वात् । तन्नः संस्कारोन्यसंस्कारप्रविधी । तस्यापिनिरोधे सर्वनिरोपानिज वनाधि। १४ । ५०