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पृष्ठ:बुद्धदेव.djvu/१४८

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। १३५ ) फानन में ठहरे। कपिलवस्तु में उनके आने की खबर पाकर सब छोटे बड़े उन्हें देखने के लिये उठ दौड़े। महाराज शुद्धोदन शाक्यों के साथ बड़े दल बल से महात्मा बुद्धदेव के दर्शन के लिये न्यग्रोध- कानन में आए और सिद्धार्थ को देख अपना जन्म सफल कर बड़े आनंदित हुए। महाराज शुद्धोदन और उनके भाइयों ने समझा था कि कुमार हम लोगों के साथ. वही वर्ताव करेंगे जो वे पहले राजकुमार होने की अवस्था में करते थे। पर बुद्धदेव ने उनके आने पर न तो उनको अभ्युत्थान दिया और न उन्हें प्रणाम ही किया किंतु वे अपने स्थान पर बैठे हुए सब लोगों को उपदेश करते रहे । उनका यह अद्भुत आचरण और भाव देख कितनों के मन में क्षोभ हुआ; पर महाराज शुद धोदन समझ गए कि अब कुमार, सिद्धार्थकुमार नहीं है। वह संसार को दुःख से छुड़ानेवाला बुद्ध तथागत है, उसमें भेदभाव नहीं है, वह सव में समभाव रखता है और सब को समान दृष्टि से देखता है। निदान महाराज शुद्धोदन ने बुंद धंदेव को अभिवादन किया और उन्हें देख सब लोग अभिवादन कर बैठ गए। थोड़ी देर तक सब लोगों ने उनका धर्म- उपदेश सुना और वे उससे शांति लाभ कर कपिलवस्तु. नगर में लौट आए। : . : . · · दूसरे दिन भगवान बुद्धदेव भिक्षुसंघ के साथ कपाय- घस्त्र धारण कर हाथ में भिक्षापात्र ले कपिलवस्तु में भिक्षा के लिये पधारे। वे भिक्षुसंघ के नियमानुसार घर घर भिक्षा लेने लगे ! सव. कपिलवस्तुंवासी. कुमार को भगवा वस्त्र धारण