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पृष्ठ:बुद्धदेव.djvu/२१३

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( ३३ ) कृषा गोतमी • एक दिन भगवान बुद्धदेव के पास एक स्त्री अपनी गोद में एक मृतक बालक लिए हुए आई और उनसे प्रार्थना करने लगी कि 'आप अनेक औपध जानते हैं, आप कृपा कर ऐसा औषध पतला- इए जिससे मेरा यह मृत बालक पुनः जीवित हो जाय । उस स्त्री- का नाम कृपा गोतमी था। वह बड़े संपन्न घराने की थी। उसके एक ही पुत्र था । उसके मर जाने पर वह पुत्रशोक से विक्षिप्त हो गई थी और मृतक बालक को अपनी गोद में लिये साधु संन्या- सियों से उसके जीवित होने के औपध पूछा करती थी। भगवान् बुद्धदेव ने उस पगली की बात सुनकर कहा-"गोतमी ! मैं तुम्हारे वालक को जिला सकता हूँ, पर तुम मुझे ऐसे घर से एक मुट्ठी सरसों ला दो जिस में आज तक कोई आदमी न मरा हो। कृपा गोतमी बुद्धदेव के पास से दौड़ी हुई एक गाँव में गई और ऐसा घर ढूंढने लगी जिसमें कोई आदमी न मग हो । पर जिस घर में वह पूछती थी, वहीं से यह उत्तर मिलता था कि अमुक पुरुप मर चुका है। इस प्रकार कई दिन वह इधर उधर मारी मारी फिरी, पर उसे एक घर भी ऐसा न मिला जिसमें कोई पुरुष न मरा हो । अंत को उसे संसार में जीवन की अनित्यता का बोध हो गया और उसने अपने पुत्र को यह गाथा पढ़कर श्मशान में फेंक दिया- 'नगामधम्मो नो निगमस्स धम्मो न चापि यं एक कुलस्स धम्मो । सबस्स लोकस्स सदेवकस्स एसेव धम्मो यदिदं अनिएता।'