पृष्ठ:बुद्धदेव.djvu/२४५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

( २३२ ) . गाँव और राष्ट्र का मालिक राजा है, प्रामण नहीं । में ब्राह्मण माता पिता से उत्पन्न होने से किसी को ब्राह्मण नहीं मानता। वह भावादि 'या नाम मात्र का ब्राह्मण है। वही व्यावहारिक ब्राह्मण है। मैं पार- मार्थिक विषय-वासना रहित पुरुष को ब्राह्मण कहता हूँ। इससे स्पष्ट है कि महात्मा बुद्धदेव के ब्राह्मण शब्द से केवल परिव्राजक सच्चा संन्यासी ही अभिप्रेत था। इसे उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा भी है- यो ध तण्इं परित्वान अनागारो परिव्रजे। तबहाभवपरिक्खीणं तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं ।। जो तृष्णा का नाश कर गृहस्थाश्रम त्याग कर संन्यास ग्रहण करता है, जिसने तृष्णा और भव (सांसारिक व्यवहार) का सर्वथा क्षय कर दिया है वा उन्हें त्याग दिया है,मैं उसी को ब्राह्मण कहता हूँ। ____व्यावहारिक धर्म में भगवान् बुद्धदेव ने गृहस्थ के लिये माता पिता की शुश्रूपा, भाई बंधु कुटुंव का पोपण, आनिहित कर्म का करना इत्यादि कर्तव्य बतलाया है-

  • पाली भाषा का 'समण' शब्द संस्कृत शर्मस' गन्द का हो अपभ्रष्ट

रूप प्रतीत होता है । भ्रमवश पीछे के विद्वानों ने सनम शब्द की मुख्य प्रकृति को न मानकर समय से संस्कृत 'श्रमण' शब्द बना लिया है। इसी भकार सायक संस्कृत भाषक का अपभ्रष्ट है विसको पीछे से 'श्रावक संस्कृत रूप दिया गया।