सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:बुद्धदेव.djvu/३७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

(२४)

कपिलवस्तु में आने पर बहुत कुछ उत्सव मनाया गया। बड़े बड़े ज्योतिपी आए और राजकुमार की जन्मकुंडली बनाकर उसका फल कहने लगे। हिमालय पर्वत के पास महिपि असित का आश्रम था। ये उस समय में सबसे बड़े ज्योतिर्विद माने जाते थे । जव असित ऋपि को मालूम हुआ कि कपिलवस्तु में महाराज शुद्धोदन के घर एक राजकुमार का जन्म हुआहै, तब वे अपने भागिनेय नारद को अपने साथ ले कपिलवस्तु पहुँचे । महाराज शुद्धोदन ने महर्षि असित की उचित अभ्यर्थना की और उन्हें शिष्यों के साथ ठहराया। महर्षि असित ने राजा के भाग्य की प्रशंसा कर कुमार को देखने को इच्छा प्रकट की। महाराज ने तुरंत सिद्धार्थ कुमार को लाकर उनके चरणों में रक्खा । असित ने बालक को बहुत कुछ आशीर्वाद दिया और उठा लिया। वे बालक के शरीर के लक्षणों और अनुष्यजनों की परीक्षा करने लगे। उन्होंने बालक सिद्धार्थ केशरीर में बत्तीस प्रकार के महापुरुप के लक्षण है और ___________________________________________

  • असित देयल फो कासदेवस भी कहते थे। वह शुद्धोदन के पिता

सिंहहनु के आमात्य थे । वृद्धावस्था में याणप्रस्थाश्रम ग्रहण कर हिमगिरि के नीचे रहते थे।

. कतमैतद्वात्रिंशता---

-तदापा----उप्णीपणी ( महाराण सर्वार्थसिदः कुमार: ) अनेन प्रथमेन महापुरुपलक्षणेन समन्यगतः सर्वार्थसिद्धः कुमारः अभिन्नां अनमयूर कला-पामिनीटिलतप्रदक्षिणावर्तकेयः। समविपुलसलाटः । उर्णा (महाराण सर्वार्य-'सिदस्व) भुयो मध्य जाता हिमरजनप्रकाश । गोपाममेत्राभिनीलनेत्रः सन-पत्यारिण्हतः । अविरलदन्तः । इदन्तः । ब्रह्मस्वरी ( महाराज सर्वार्थ:-