सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:बुद्धदेव.djvu/३९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

( २६ ) से कहा-राजन् ! आप बड़े भाग्यशाली और सुकृति हैं । आपने पूजन्म में बड़ो तपस्या को थो जो आपको भगवान् । ने सर्व लक्षण-सम्पन्न पुत्र दिया है। ऐसा पुत्र बड़े भाग्य से अनेक जन्मों के पुण्य के उदय से ही उत्पन्न होता है। इस बालक में महापुरुष के बत्तीस लक्षण और अस्सी अनुव्यंजन हैं। यह . वालक यदि संसार में गृहस्थाश्रम में प्रवृत्त होगा तो चक्रवर्ती सम्राट होगा; और यदि यह संन्यासाश्रम ग्रहण करेगा तो स्वयं मोक्ष लाभ कर अन्यों के लिये अपावृत्त मोक्षमार्ग का उद्घाटन . करेगा और सम्यक् संबुद्ध होगा। यह कह महर्षि असित विदा हो अपने आश्रम को सिधारे। चलते समय अपने प्रिय शिष्य और भागि- नेय नारद से कहा-'नारद ! मैं तो वृद्ध हो चुका हूँ।सम्भव है कि मैं शीघ्र हो मर जाऊँ। पर यदि यह कुमार संन्यास ग्रहण करे तो तुम अवश्य इसके शिष्य होकर निर्वाण पद की जिज्ञासा करना ।" शुचिनबनरच, विशालनयमरष, नीलकुवलयदलसदृशनवनश्च, सहितभूरच, [.महाराध सर्वार्थसिद्धः कुमार:] चित्रभू रव, संगभू रचानुपर्वधूश्वासितः दूरच, पोनगंडरचाधिपमगंडरथव्यपगतगंडदोपरचानुपहवकूर्षरच, सुविदिवे- द्रियरच, जुपरिपूर्ण द्रिवश्व [ महाराज सौर्यसिद्धः कुमार: ] । संगतमुख- ललाटरच, परिपूर्योत्तमांगश्वासितकेशरच, सहितकेयश्चानुपूर्वकेपरच, श्रीव- सस्वस्तिकनम्दावर्तपईमानसंस्थामकेशव महाराज सर्वार्थसिद्धः कुमार। इनानि वानि [महाराण सर्वार्थसिहस्य कुमारस्व ] अशीत्वनुव्यंजनानि । ललितविस्तर अध्याय . . ।।