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( ७२ ) " गौतम तू धन्य है ! तेरा परिश्रम धन्य है ! तूने थोड़े ही दिनों के श्रम में आचार्य से उनका सारा ज्ञान प्राप्त कर लिया । तेरा उद्योग सराहनीय है जो तू अपने उद्देश्य पर अटल है।" .. • “गौतम थोड़े दिन रुद्रक के आश्रम में रह कर वहाँ से प्रस्थान करने पर उद्यत हुए और आचार्य की आज्ञा ले वहाँ से चल पड़े। गौतम के चलने पर पंचभद्रवर्गीय ब्रह्मचारियों ने उनका पीछा किया और उन लोगों ने गौतम के साथ रहकर प्रज्ञालाम करने का संकल्प किया। गौतम उन पंचभद्रवर्गीय ब्रह्मचारियों के साथ राजगृह से गयशीर्ष पर्वत की ओर, जिसे अब गया कहते हैं, चले। . .